Full Width CSS

मूल्यांकनपरक शैली: तर्क और निष्कर्ष की कला

मूल्यांकन शैली

किसी भी घटना, विषय-वस्तु, व्यक्ति, वस्तु इत्यादि के सम्बन्ध में प्रत्येक व्यक्ति के मानस पटल पर एक प्रतिक्रिया होती है। यह प्रतिक्रिया व्यक्ति विभेद के कारण भिन्न-भिन्न प्रकार की होती है। प्रारम्भ से ही मनुष्य का समाजीकरण होता है। वह धीरे-धीरे अच्छे-बुरे का भेद समझने लगता है। प्रत्येक घटना उस पर अच्छा या बुरा प्रभाव डालती है। स्वाभाविक रूप से वह उसे अच्छी या बुरी कहकर अपनी दृष्टि में उसका महत्व या मूल्य आँकने का प्रयास करता है। प्रत्येक व्यक्ति के सोचने समझने का ढंग अलग-अलग होता है। एक बात किसी के लिए अच्छी है, वही दूसरे के लिए बुरी भी हो सकती है। एक ही घटना के प्रति विभिन्न व्यक्तियों की राय भिन्न-भिन्न हो सकती है। फलतः मूल्यांकन भी अलग-अलग होता है।
सारांश रूप में, किसी व्यक्ति, वस्तु, घटना या विषय-वस्तु को उसके गुण-दोषों के आधार पर निष्कर्षात्मक अभिमत प्रकट करना, मूल्यांकनपरक शैली कहलाती है।

मूल्यांकनपरक शैली में तर्क-वितर्क के आधार पर खण्डन-मण्डन करके उचित या अपनी दृष्टि से उचित निष्कर्ष को प्रतिपादित किया जाता है।
मूल्यांकनपरक शैली में सर्वप्रथम विषय-वस्तु का यथावत् प्रस्तुतीकरण किया जाता है। तत्पश्चात् उसके गुण-दोषों के आधार पर, तर्क के आधार पर खण्डन करते हुए अन्त में निष्कर्ष प्रकट किया जाता है। स्पष्ट है कि यह शैली वैयक्तिकता व्यक्त करती है। व्यक्ति अपने मत के अनुसार मूल्यांकन करता है अतः इसमें वक्ता तटस्थ नहीं रहता, बल्कि वक्ता का व्यक्तित्व या वैयक्तिकता का भी इसमें समावेश होता है, किन्तु जहाँ तक सम्भव हो मूल्यांकन वस्तुनिष्ठ होकर करना चाहिए।

मूल्यांकनपरक शैली के संबंध में आवश्यक बातें -

1) सर्वप्रथम विषय का प्रस्तुतीकरण किया जाता है।

2) तत्पश्चात उसके गुण-दोषों का विवेचन किया जाता है।

3) अन्त में निष्कर्ष रूप में अपना अभिमत प्रकट करते हुए निष्पक्ष मूल्यांकन किया जाता है।

4) मूल्यांकनपरक शैली में वैयक्तिकता होती है। व्यक्ति अपने सोचने के ढंग से विषय-वस्तु का मूल्यांकन करता है।

5) अन्त में व्यक्ति मूल्यांकनपरक शैली में निष्कर्षात्मक अव्ययों का भी प्रयोग करता है, जैसे-संक्षेप में।

हमारी दृष्टि में ........
मैं समझता हूँ कि .......

कभी-कभी अपने मत के पूर्व अन्य लोगों के मत प्रकट करके तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है। जैसे - लोगों का मानना है कि... हमारा अभिमत है..। इस प्रकार मिश्र वाक्यों का भी प्रयोग किया जाता है।

6) किसी वस्तु का होना या अभाव बताया जाता है, इसलिए इसमें अस्तित्व सूचक व निषेधात्मक वाक्यों का भी प्रयोग होता है।

मूल्यांकनपरक शैली की विशेषताएँ

इसकी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1) तर्कसम्मत स्थापनापरक वाक्य मूल्यांकनपरक शैली का तर्कसम्मत होना आवश्यक है। इसीलिये इस शैली में तर्क-वितर्क देते हुए तथ्यों को स्थापित किया जाता है और इन्हीं के द्वारा बात पुष्ट की जाती है। इस पुष्टि के लिये पूर्व परम्परा पर भी दृष्टि रखी जाती है और वर्तमान में भी उसकी प्रासंगिकता देखी जाती है।

2) मिश्र वाक्यों का अधिक प्रयोग- मूल्यांकनपरक शैली के लिये मिश्र वाक्य अधिक उपयोगी होते हैं। इससे विवेचन स्तरीय और कलात्मक बनता है तथा तथ्यों में स्थूलता नहीं आ पाती। इससे विवेचन को एक वजन और गाम्भीर्य मिलता है। इसी कारण यह शैली, न साधारण वाक्यों की शैली के रूप में सहज हो पाती है और न संयुक्त वाक्यों की शैली की तरह अत्यधिक सामासिक। यह शैली एक समन्वित शैली के रूप में रहती है।

3) कारण-कार्य वाक्यों का प्रयोग- मूल्यांकनपरक शैली में कारणों का स्पष्टीकरण आवश्यक है। इसी से तथ्य प्रामाणिक एवं तर्कसम्मत बनते हैं। हर कार्य के पीछे कोई-न-कोई कारण होता है। इसी प्रकार हर तथ्य या विचार के पीछे भी कोई-न-कोई कारण होता है, अतः विवेचन या मूल्यांकन कारण-कार्य को दृष्टि में रखकर करना आवश्यक है।

4) विधि-निषेधमूलक वाक्यों का प्रयोग- मूल्यांकनपरक शैली में स्वीकार्य और अस्वीकार्य, दोनों प्रकार के तथ्यों को मूल्यांकित करना पड़ता है और उसमें रचना के गुण-दोष सामने आते हैं। अतः नकारात्मक और सकारात्मक दोनों पक्ष इस शैली में उ‌द्घाटित होते हैं।

5) मौलिकता अपेक्षित - मूल्यांकनपरक शैली में तथ्यों की मौलिकता पर भी दृष्टि रहती है। इसीलिये लेखक इस शैली में मेरा मत है, मेरी दृष्टि में, हमारी धारणा है- जैसे वाक्यों का प्रयोग करता है। इनसे इस शैली को विशिष्टता प्राप्त होती है।

6) उदाहरणों का प्रयोग- मूल्यांकनपरक शैली में तथ्यों की स्थापना के लिये, उदाहरण देकर भी अपने मत की पुष्टि की जाती है। इस योजना से भी निष्कर्ष प्रामाणिक बनते हैं।

7) तुलनात्मक वाक्यों का प्रयोग- मूल्यांकनपरक शैली में अन्य से तुलना भी की जाती है, इससे भी मूल्यांकन प्रामाणिक और व्यापक बनता है तथा विश्वसनीयता आती है। अतः तुलनात्मक वाक्यों का प्रयोग भी मूल्यांकनपरक शैली को प्रभावी बनाता है।

इस प्रकार मूल्यांकनपरक शैली एक व्यापक भावभूमि को आत्मसात करके चलती है और मानव को तार्किक तथा तथ्यपरक दृष्टि प्रदान करती है। इससे तथ्य, रचना या वस्तु को समझने में सुविधा होती है। हम रचना के गुण-दोषों को सहज ही जान सकते हैं।

मूल्यांकनपरक शैली के उदाहरण

उदाहरण - शहरी कुष्ठ कार्यक्रमों का लेखा-जोखा तब तक पूर्ण नहीं होगा, जब तक इन रोगियों की कमियाँ व पुनर्व्यवस्थापन की बात सामने नहीं आती। गन्दी बस्तियों में ऐसे मरीजों पर सर्वेक्षण करने के बाद यह पाया गया है कि रोग की प्राथमिक अवस्था में ही विभिन्न उपचार साधनों के प्रयोग के लिए इन्हें प्रोत्साहित नहीं किया गया। वहाँ ऐसे मरीज अधिक संख्या में पाए जाते हैं, जिनमें रोग की प्राथमिक अवस्था में कुरूपता आ जाती है। इसलिए यह आवश्यक है कि अर्धचिकित्सीय कर्मचारियों, समाजसेवियों आदि के दल बनाएं जाएँ, जो उन्हें आवश्यक जानकारी दें। कुष्ठ रोग से निबटने के लिए दो तरह से अभियान चलाया जाना चाहिए। प्रथम यह कि प्रभावशाली दवाओं के द्वारा ऐसे मरीजों का उपचार करके उनकी संख्या कम की जानी चाहिए। दूसरा सर्वेक्षण दल इस रोग से बचने के बारे में सलाह दें।