अनुस्मारक
जब किसी शासकीय कार्यालय में भेजे गए शासकीय पत्र का उत्तर प्राप्त नहीं होता या उस पर कोई कार्यवाही नहीं होती तो सम्बद्ध विभाग को एक स्मरण-पत्र भेजा जाता है, इसे अनुस्मारक कहते हैं। स्मरण कराने के लिए भेजे गए पत्र, अनुस्मारक कहलाते हैं। इनका बहुत महत्व है। कार्यालयों की कार्यप्रणाली बहुत ही धीमी होती है। इसमें उच्च कार्यालयों द्वारा अधीनस्थ कार्यालयों को अनेक विषयों पर पत्र लिखे जाते हैं, जानकारियाँ माँगी जाती हैं, कुछ निर्देशों का पालन करने की अपेक्षा की जाती है, किन्तु कभी-कभी भूल से या किसी कारणवश जब अधीनस्थ कार्यालयों द्वारा उच्च कार्यालय के पत्र पर कार्यवाही नहीं की जाती तब कार्यवाही के लिए उच्च कार्यालय, अधीनस्थ कार्यालयों को स्मरण कराने के लिए स्मरण पत्र लिखता है, इसे अनुस्मारक कहते हैं।
प्रथम स्मरण-पत्र भेजे जाने के बाद भी अपेक्षित उत्तर प्राप्त नहीं होने पर द्वितीय स्मरण-पत्र भेजा जाता है। इस पर भी उत्तर न आने पर अंतिम स्मरण-पत्र भेजा जाता है। ऐसे स्मरण पत्रों की प्रथम, द्वितीय एवं अंतिम संख्याएँ दाहिनी ओर ऊपर संकेतित कर दी जाती हैं।
अनुस्मारक की विशेषताएँ
(i) मूल पत्र के अनुसार ही अनुस्मारक का भी स्वरूप होता है अर्थात् मूलपत्र यदि ज्ञापन है तो अनुस्मारक भी ज्ञापन के रूप में ही होगा। इसमें पहले लिखे गए पत्र की भाषा को दोहराया जाता है।(ii) इसमें मूलपत्र के क्रमांक और दिनांक का सन्दर्भ में स्पष्ट उल्लेख किया जाता है।
(iii) पिछले पत्र का महत्त्व बढ़ गया है तो अनुस्मारक अर्द्ध शासकीय रूप में भी भेजा जा सकता है।
(iv) इसमें पिछले पत्र के उत्तर न मिलने पर खेद प्रकट किया जाता है।
(v) अनुस्मारक का मूल उद्देश्य उस कार्य की स्मृति कराना है जिसके सम्बन्ध में उसे भेजा गया है।
(vi) प्रायः एक डेढ़ माह प्रतीक्षा पश्चात् ही अनुस्मारक भेजना चाहिए। यदि इस पर भी जवाब न मिले तो दूसरा, तीसरा अनुस्मारक भेजना चाहिए।
(vii) अनुस्मारक का आकार अपेक्षाकृत छोटा होता है।
(viii) अनुस्मारक की भाषा, विषय तथा परिस्थिति के अनुसार थोड़ी सख्त भी हो सकती है।
अनुस्मारक के दो प्रकार हैं - शासकीय व अर्द्ध-शासकीय।